स्‍वर्ग-नरक

04 March, 2009

एक फकीर था जीवन भर उसने पुण्य का कार्य किया ,जाने अनजाने उससे एक अपराध हो गया ,मत्यु के समय यमदूत आये उन्होने फकीर के सामने प्रस्ताव रखा कि अपनी इच्छानुसार वह पहले स्वर्ग या नरक का चयन कर सकता हैं ा फकीर ने नरक मॉगा यमदुत उसे नर्क में लेकर चले गये ,नर्क में उसने देखा कि मनुष्येा के हाथ बीस-बीस मीटर लम्बे हैं सब दुवले पतले व दुखी थे,खाने का समय था सबके सामने अच्छे-अच्छे भोजन रख दिये गये लेकिन किसी का हाथ अपने मुह तक नही पहुच पा रहा था थेाडे प्रयास के बाद उन लोगो ने दूसरे के सामने रखा भोजन उठा कर फेकना प्रारम्भर कर दिया और सभी भूखे ही रह गये ं फकीर के नर्क का समय समाप्त हो गया दूत उसे स्वर्ग मे ले गये वहॉं भी लोगो के हाथ उतने ही लम्बे थे लेकिन सभी स्वथ्य एवं प्रस्रन थे फकीर को वडा आश्चर्य हुआ ा खाने का समय यहॅा भी आया उसने देखा यहॉ लोग अपने लम्बे हाथो से दूसरे को भोजन करा रहे थे थोडी देर मे सबने भोजन कर लिया ा फकीर को स्वरर्ग -नर्क का आशय समझ में आ गया था ा

अबाध

अरस्तुल ने कहा था मनुष्यी राजनैतिक प्राणी है ,कालान्तहर मे इसकी सत-प्रतिशत परिण्ती हुइ ,मनुष्यन ने राजनीति को अपने जीवन का एक महत्व पूर्ण्‍ अंग बना लिया ,राजनैतिक शक्ति का केन्द्र भविष्य का सबसे ससक्त केन्द्र सावित हुआ ,मानव जीवन के हर पक्ष मे राजनीति ने अपना दबदबा बनाये रखा लेकिन फिर भी आदर्श के चंगुल से यह अपने को मुक्तप नही करा सकी थी इस सीमा तक कल्याेण्‍ कारी उद़देश्यो के पूर्ती की आशा इससे की जा सकती थी
कालान्तिर मे परिद़श्यर बदला अाधुनिक राजनीति के जनक मैकियावेली का उदय हुआ आपने यह सिद्ध किसा कि राजनीति मनुष्यो‍ के लिए नही है वरन मनुष्यै ही राजनीति के लिए है छल-कपट-झूठ-फरेब-स्वाेर्थ राजपीति के आधार स्त म्भ बने , पूरे विश्व ने इसका स्वाकगत किया यह स्वसच्छ न्दफ थ्‍ी अनियंि‍त्रत थ्‍ी आदर्श का स्थाभन स्वारर्थ ने ले लिया, मानव कल्यािण्‍ का स्थानन स्वल-कल्यादण्‍ ने ले लिया ा इसकी चमक की चकाचौध ने मनुष्यथ की ऑखो को चौधिया दिया वह अब बहुत दूर तक देख पाने की सामर्थ्ये खो बैठा निहित स्वानथो ने उसे अन्धाक बना दिया ा आशा वादियो एवं निराशा वादियो मे केवल एक समानता रह गयी दोनो की ही शान्ती् छिन गयी ा

श्रीलंकन क्रिकेट टीम पर हमला मात्र पाकिस्ता न की बुरी कानून व्यववस्थाह को ीह नही प्रदर्शित करता है, वरन यह भी अताता है कि एक राष्टो जब अपने पतन की अवस्थान में जा रहा होता है राष्टीेय सम्माहन एवं स्वायभिमान जैसे शब्दोा के मायने बदल जाते है ा पूरी दुनिया में निन्दात हो रही है,कि पाकिस्ताान ऐसे मेहमानो की सुरक्षा करने में भी सक्षम नही है जिसपर पूरे देश के र्किकेट प्रेमियो की निगाहे थी ा
यह एक लाचार राजनैतिक व्यमवस्था की झलकियां मात्र हैं, वही राजनैतिक व्यमवस्थार जो हर समय अपने को किसी भी राष्ट़य की सर्वोच्च प्रभावशाली संस्था के रूप में प्रकट करने के लिए उतावली रहती हैं
यहाँ समस्या सामन्ज़स्यी की भी दिखायी पडती है,जो अधिकारो एवं कर्तवयो के बीच, संस्थाओ संस्था‍ओ के बीच लुका-छिनी का खेल-खेल रही होती हैं ,हुक्मटरान अपने अध्किारो के प्रति सचेष्‍ट रहते हैं राष्ट़ उनके कर्तव्‍यो के प्रति प्रत्यसक्ष –परोक्ष रूप से सचेष्टं रहता हैं,जब राजनैतिक संस्थाह का अधिकार बदता हैं तो उनके प्रति राष्ट़ु की अपेक्षाओ का बदना स्वा्भाविक है सामन्जरस्यै बिगडने पर राष्ट़ का पतन अवस्युम्भािवि होता हैं यह पतन ही लाता है बदती बेरोजगारी ,बदती महगाइ, कुपोषण्‍ भष्टा्चार, आतंकवाद आदि ा यह सारी पतन कारी प्रवृत्तियॉ किसी देश मे उसी तरह सक्रिय हो जाती है जैसे वीज वोने से पहले हलवाहो का समूह खेत को उपजाउ बनाने के लिए सक्रिय हो जाता है और बीज पडता है विनास का जो तेजी से फलता फूलता है और एक सभ्याता का पतन हो जाता हैा